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विश्‍व धर्म सम्‍मेलन (14 सितंबर 2023), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

विश्व-धर्म-महासभा

स्वामी विवेकानंद

शिकागो, ११ सितंबर, १८९३

अमेरिकावासी बहनों तथा भाइयों,

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया है, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिंदुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच पर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रसारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता है कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट अंश को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है।...

भाइयो, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृत्ति मैं अपने बचपन से करता रहा हूँ और जिसकी आवृत्ति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं :

रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥...

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लेख

भारतीय भाषाओं से सशक्त होती हिंदी
प्रो. लेल्ला कारुण्यकरा

गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर ने कहा था, "भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी।" ठाकुर ने यह इसलिए कहा था क्योंकि उन्हें हिंदी के महत्व का बोध था। वह हिंदी जो राष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वाधीनता सेनानियों के बीच सम्पर्क का प्रमुख माध्यम रही। वह हिंदी जो विविधता में एकता का सूत्र रही। जो देश के ज्यादातर भागों में अधिकांश लोगों द्वारा सबसे अधिक बोली-समझी जाती रही है और देश के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, साम्प्रदायिक एवं भाषायी समन्वय व सौहार्द का प्रतीक है। भारतीय भाषाओं और हिंदी के संबंध की दृष्टि से संविधान की धारा 351 अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण है जिसमें हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में सौहार्द और सामंजस्य की अपेक्षा की गई है, "संघ हिंदी के प्रसार के लिए प्रयत्न करेगा और हिंदी को इस प्रकार विकसित करेगा कि वह देश की मिलीजुली संस्कृति को अभिव्यक्त कर सके। संघ से यह भी अपेक्षा है कि वह हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए संस्कृत, हिंदुस्तानी और अन्य भारतीय भाषाओं के मध्य सतत संवाद को प्रोत्साहन देगा। जहां तक संभव हो भारतीय भाषाओं के शब्द, मुहावरे, लोकोक्तियों से हिंदी को समृद्ध किया जायेगा।"इस दृष्टि से यह बेहद तात्पर्यपूर्ण है कि हिंदी विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित करके सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है। हिंदी ने तेलगु से कुचीपुड़ी और मोरम शब्‍दों को ग्रहण किया तो तमिल से पिल्‍ला और पंडाल जैसे शब्‍दों को आत्‍मसात किया। इसी तरह चाल (छोटा कमरा) और अम्‍मत मलयालम के शब्‍द हैं किन्‍तु ये शब्‍द हिंदी में स्‍वीकार किए जा चुके हैं। छाता बांग्‍ला का शब्‍द है और हड़ताल गुजराती का। ये दोनों शब्‍द हिंदी में खूब प्रचलित हैं। हिंदी में श्री, श्रीमती, राष्ट्रपति, मुद्रास्फीति जैसे अनेक शब्द मूलतः मराठीभाषी बाबूराव विष्णु पराड़कर के चलाए हुए हैं। कोई भाषा तभी नीरभरी नदी बनती है जब वह दूसरी भाषाओं से स्रोत ग्रहण करे। इससे वह भाषा समृद्ध भी बनती है। हिंदी समेत कई भाषाओं में एक मुहावरा है-तू डाल-डाल, मैं पात-पात। तेलुगु में भी यह मुहावरा है। तेलुगु में जो मुहावरा है, उसका हिंदी अनुवाद होगा- तू मेघ-मेघ, मैं तारा तारा। जाहिर है कि इस तरह के मुहावरों का प्रचलन बढ़ने पर हिंदी और सशक्त होगी...

वैचारिकी संग्रह
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड – 1
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड - 2
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड - 3
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड - 4
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड - 5
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड - 6
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड - 7
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड - 8
दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन खंड - 9

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संपादक
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ISSN 2394-6687

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